03-03-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

डबल विदेशी बच्चों से बापदादा की रूह-रूहान

मायाजीत, प्रकृतिजीत बनाने वाले बापदादा, स्वराज्य अधिकारी बच्चों प्रति बोले:-

आज बापदादा विशेष डबल विदेशी बच्चों से मिलने आये हैं। डबल विदेशी अर्थात् सदा स्वदेश, स्वीट होम का अनुभव करने वाले। सदा मैं स्वदेशी स्वीट होम का रहने वाला, परदेश में - पर-राज्य में स्वराज्य अर्थात् आत्मिक राज्य और सुख का राज्य स्थापना करने गुप्त रूप में प्रकृति का आधार ले पार्ट बजाने के लिए आये हैं। हैं स्वदेशी, पार्ट परदेश में बजा रहे हैं। यह प्रकृति का देश है। स्वदेश आत्मा का देश है। अभी प्रकृति माया के वश में है। माया का राज्य है। इसलिए परदेश हो गया। यही प्रकृति आपके मायाजीत होने से आपकी सुखमय सेवाधारी बन जायेगी। मायाजीत, प्रकृतिजीत होने से अपना सुख का राज्य, सतोप्रधान राज्य, सुनहरी दुनिया बन जायेगी। यह स्पष्ट स्मृति आती है ना? सिर्फ सेकण्ड में चोला बदली करना है। पुराना छोड़ नया चोला धारण करना है। कितनी देर लगेगी? फरिश्ता सो देवता बनने में सिर्फ चोला बदली करने की देरी लगेगी। वाया स्वीट होम भी करेंगे लेकिन स्मृति अन्त में फरिश्ता सो देवता बने कि बने, यही रहेगी। देवताई शरीर की, देवताई जीवन की, देवताओं के दुनिया की, सतोप्रधान प्रकृति के समय की स्मृति रहती है? भरे हुए संस्कार अनेक बार के राज्य के, देवताई जीवन के इमर्ज होते हैं? क्योंकि जब तक आप होवनहार देवताओं के संस्कार इमर्ज नहीं होंगे तो साकार रूप में सुनहरी दुनिया इमर्ज कैसे होगी? आपके इमर्ज संकल्प से देवताई सृष्टि इस भूमि पर प्रत्यक्ष होगी। संकल्प स्वत: ही इमर्ज होता है या अभी समझते हो बहुत देरी है? देवताई शरीर आप देव आत्माओं का आह्वान कर रहे हैं। दिखाई दे रहे हैं अपने देवताई शरीर? कब धारण करेंगे? पुराने शरीर से दिल तो नहीं लग गई है? पुराना टाइट तो नहीं पहना हुआ है? पुराना शरीर, पुराना चोला पड़ा हुआ है जो समय पर सेकण्ड में छोड़ नहीं सकते। निर्बन्धन अर्थात् लूज ड्रेस पहनना। तो डबल विदेशियों को क्या पसन्द होता है - लूज वा टाइट? टाइट तो पसन्द नहीं है ना! बन्धन तो नहीं है?

अपने आप से एवररेडी हो! समय को छोड़ो, समय नहीं गिनती करो। अभी यह होना है, यह होना है - वह समय जाने बाप जाने। सेवा जाने बाप जाने। स्व की सेवा से सन्तुष हो? विश्व सेवा को किनारे रखो, स्व को देखो। स्व की स्थिति में, स्व के स्वतन्त्र राज्य में, स्वयं से सन्तुष्ट हो? स्व की राजधानी ठीक चला सकते हो? यह सभी कर्मचारी, मंत्री, महामंत्री सभी आपके अधिकार में हैं? कहाँ अधीनता तो नहीं है? कभी आपके ही मंत्री, महामंत्री धोखा तो नहीं देते? कहाँ अन्दर ही अन्दर गुप्त अपने ही कर्मचारी माया के साथी तो नहीं बन जाते हैं? स्व के राज्य में आप राजाओं की रूलिंग पावर कन्ट्रोलिंग पावर यथार्थ रूप से कार्य कर रही है? ऐसे तो नहीं कि आर्डर करो शुभ संकल्प में चलना है और चलें व्यर्थ संकल्प। आर्डर करो सहनशीलता के गुण को और आवे हलचल का अवगुण। सभी शक्तियाँ, सभी गुण, हे स्व राजे, आपके आर्डर में हैं? यही तो आपके राज्य के साथी हैं। तो सभी आर्डर में हैं? जैसे राजे लोग आर्डर करते और सभी सेकण्ड में जी हजूर कर सलाम करते हैं, ऐसे कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर हैं? इसमें एवररेडी हो? स्व की कमज़ोरी, स्व का बन्धन धोखा तो नहीं देगा?

आज बापदादा स्वराज्य अधिकारियों से स्व के राज्य का हाल-चाल पूछ रहे हैं! राजे बैठे हो ना? प्रजा तो नहीं हो ना? किसी के अधीन अर्थात् प्रजा, अधिकारी अर्थात् राजा। तो सभी कौन हो? राजे। राजयोगी या प्रजा योगी? सभी राजाओं की दरबार लगी हुई है ना? सतयुग के राज्य सभा में तो भूल जायेंगे, एक दो को पहचानेंगे नहीं कि हम वहीं संगमयुगी हैं। अभी त्रिकालदर्शी बन एक दो को जानते हो, देखते हो। अभी का यह राज्य दरबार सतयुग से भी श्रेष्ठ है। ऐसी राज्य दरबार सिर्फ संगमयुग पर ही लगती है। तो सबके राज्य का हालचाल ठीक है ना? बड़े आवाज़ से नहीं बोला कि ठीक है!

बापदादा को भी यह राज्य सभा प्रिय लगती है। फिर भी रोज चेक करना, अपनी राज्य दरबार रोज लगाकर देखना अगर कोई भी कर्मचारी थोड़ा भी अलबेला बने तो क्या करेंगे? छोड़ देंगे उसको? आप सबने शुरू के चरित्र सुने हैं ना! अगर कोई छोटे बच्चे चंचलता करते थे, तो उनको क्या सजा देते थे? उसका खाना बन्द कर देना या रस्सी से बांध देना यह तो कामन बात है लेकिन उसको एकान्त में बैठने की ज्यादा घण्टा बैठने की सजा देते थे। बच्चे हैं ना, बच्चे तो बैठ नहीं सकते। तो एक ही स्थान पर बिना हलचल के 4-5 घण्टा बैठना उसकी कितनी सजा है। तो ऐसी रायल सजा देते थे। तो यहाँ भी कोई कर्मेन्द्रिय ऐसे वैसे करे तो अन्तर्मुखता की भट्टी में उसको बिठा दो। बाहरमुखता में आना ही नहीं है, यही उसको सजा दो। आये फिर अन्दर कर दो। बच्चे भी करते हैं ना। बच्चों को बिठाओ फिर ऐसे करते हैं, फिर बिठा देते हैं। तो ऐसे बाहरमुखता से अन्तर्मुखता की आदत पड़ जायेगी। जैसे छोटे बच्चों को आदत डालते हैं ना - बैठो, याद करो। वह आसन नहीं लगायेंगे फिर-फिर आप लगाकर बिठायेंगे। कितनी भी वह टाँगे हिलावे तो भी उसको कहेंगे नहीं, ऐसे बैठो। ऐसे ही अन्तर्मुखता के अभ्यास की भट्टी में अच्छी तरह से दृढ़ता के संकल्प से बाँधकर बिठा दो। और रस्सी नहीं बाँधनी हैं लेकिन दृढ़ संकल्प की रस्सी, अन्तर्मुखता के अभ्यास की भट्टी में बिठा दो। अपने आपको ही सजा दो। दूसरा देगा तो फिर क्या होगा? दूसरे अगर आपको कहें यह आपके कर्मचारी ठीक नहीं हैं, इसको सजा दो। तो क्या करेंगे? थोड़ा-सा आयेगा ना - यह क्यों कहता! लेकिन अपने आपको देंगे तो सदाकाल रहेंगे। दूसरे के कहने से सदाकाल नहीं होगा। दूसरे के इशारे को भी जब तक अपना नहीं बनाया है तब तक सदाकाल नहीं होता। समझा!

राजे लोग कैसे हों? राज्य दरबार अच्छी लग रही है ना! सब बड़े राजे हो ना! छोटे राजे तो नहीं, बड़े राजे। अच्छा –

आज ब्रह्मा बाप खास डबल विदेशियों को देख रूह-रूहान कर रहे थे। वह फिर सुनायेंगे। अच्छा - सदा मायाजीत, प्रकृतिजीत, राज्य अधिकारी आत्मायें, गुणों और सर्व शक्तियों के खज़ानों को अपने अधिकार से कार्य में लगाने वाले, सदा स्वराज्य द्वारा सर्व कर्मचारियों को सदा के स्नेही साथी बनाने वाले, सदा निर्बन्धन, एवररेडी रहने वाले, सन्तुष्ट आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

आस्ट्रेलिया ग्रुप से - सदा याद और सेवा का बैलेन्स रखने वाले, बापदादा और सर्व आत्माओं द्वारा ब्लैसिंग लेने वाली आत्मायें हो ना! यही ब्राह्मण जीवन की विशेषता है जो सदा पुरूषार्थ के साथ-साथ ब्लैसिंग लेते हुए बढ़ते रहें। ब्राह्मण जीवन में यह ब्लैसिंग एक लिफ्ट का काम करती है। इस द्वारा उड़ती कला का अनुभव करते रहेंगे।

आस्ट्रेलिया निवासियों से बापदादा का विशेष स्नेह हैं, क्यो? क्योंकि सदा एक अनेकों को लाने की हिम्मत और उमंग में रहते हैं। यह विशेषता बाप को भी प्रिय है। क्योंकि बाप का भी कार्य है - ज्यादा से ज्यादा आत्माओं को वर्से का अधिकारी बनाना। तो फॉलो फादर करने वाले बच्चे विशेष प्रिय होते हैं ना। आने से ही उमंग अच्छा रहता है। यह एक आस्ट्रेलिया की धरनी को जैसे वरदान मिला हुआ है। एक अनेकों के निमित्त बन जाता है। बापदादा तो हर बच्चे के गुणों की माला सिमरण करते रहते हैं। आस्ट्रेलिया की विशेषता भी बहुत है लेकिन आस्ट्रेलिया वाले माया को भी थोड़ा ज्यादा प्रिय हैं। जो बाप को प्रिय होते हैं, वह माया को भी प्रिय हो जाते हैं। कितने अच्छे-अच्छे थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन माया के बन तो गये हैं ना। आप सब तो ऐसे कच्चे नहीं हो ना! कोई चक्र में आने वाले तो नहीं हो? बापदादा को अभी भी वह बच्चे याद हैं। सिर्फ क्या होता है किसी भी बात को पूरा न समझने के कारण क्यों और क्या में आ जाते हैं तो माया के आने का दरवाजा खुल जाता है। आप तो माया के दरवाजे को जान गये हो ना! तो न क्यों-क्या में जाओ और न माया के आने का चांस मिले। सदा डबल लाक लगा रहे। याद और सेवा ही डबल लाक है। सिर्फ सेवा सिंगल लाक है। सिर्फ याद, सेवा नहीं तो भी सिंगल लाक है। दोनों का बैलेन्स यह है - डबल लाक। बापदादा की टी.वी. में आपका फोटो निकल रहा है, फिर बापदादा दिखायेंगे - देखो इस फोटो में आप हो। अच्छा - फिर भी संख्या में हिम्मत से, निश्चय से अच्छा नम्बर है। बाप को ज्यादा प्रिय लगते हो इसलिए माया से बचने की युक्ति सुनाई अच्छा-